22 Apr 2012

आखिर ऐसा क्यों हुआ ??


Article written by Ms. Poonam Singh, School of Journalism and New Media Studies (SOJNMS), IGNOU.


She has been awarded the "Certificate of  Participation" for contributing this article on the topic of immunization  to IGNOU-UNICEF Partnership project .


मीज़ल्स, एक ऐसी बीमारी जिसने आज मुझे मेरे बच्चे से दूर कर दिया ! रब करें ये बीमारी कभी        
 किसी को ना हो ! फिर कोई माँ मेरी तरह अपने बच्चे के लिए रोएगी नहीं, बिल्खेगी नहीं !
ज़रूरत थी तो बस मेरे पढ़े लिखे होने की और अपने बच्चों की सेहत के प्रति जागरूक होने की ! ”

ये एक ऐसी माँ की कहानी, उन्हीं की जुबानी है, जो कुछ दिन पहले ही अपने मासूम से बेटे को इस दुनिया से विदाई दे चुकी हैं ! उनका बेटा, जिसका अभी हाल ही में पहला जन्मदिन मनाया गया था, वो अब अपने दूसरे जन्मदिन के लिए अपने परिवार को खुशियाँ नहीं, गम के अँधेरे देकर चला गया है !

हम यहाँ बात कर रहे हैं मीज़ल्स की, एक ऐसी बीमारी जो इतनी घातक है कि वो किसी के ऊपर भी हावी हो सकती है, अर्थात ये संक्रामक रोग है जो किसी से भी, किसी को भी हो सकता है ! ये बीमारी खासकर बच्चों में होती है, क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम इतना मज़बूत नहीं होता कि वो किसी घातक बीमारी से बचाव  कर सकें ! 

ऐसा नहीं है कि ये लाइलाज बीमारी है, पर ज़रूरत है तो जागरूकता की, जहाँ पर सभी माँ - बाप अपने बच्चों की सेहत के प्रति ध्यान दें और कब किसके टीके लगवाने हैं, कब कौन सी दवा पिलवानी है, उसका नियमित तौर पर ध्यान रखें !  इस बीमारी को खसरा और ग्रामीण भाषा में छोटी माता कहते हैं ! ये दूषित पानी पीने से होती है ! इसमें मरीज के पूरे शरीर पर छोटे छोटे लाल दाने निकल आते हैं और चेहरे पर इसका ज़्यादा असर दिखाई देता है ! इसका मुख्य कारण है धूप और गर्मी में ज़्यादा देर तक खुले घूमना ! इससे शरीर पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिसकी वजह से बुखार आ जाता है और बुखार के कारण शरीर कमजोर होने लगता है ! और फिर इसके बाद दिमाग में दर्द का एहसास बढ़ने लगता है, जिसके कारण चक्कर आने लगते हैं ! पर अफ़सोस इस बात का है कि छोटे बच्चे अपनी इस हालत को बयाँ नहीं कर पाते, जिसके कारण ना माँ बाप समझ पाते हैं और ना ही सही समय पर उनका इलाज हो पाता है !
इसी विषय पर मैंने उत्तर प्रदेश के मौदाहा गाँव की एक बस्ती में जाकर कुछ मजदूरों से बात की तो बहुत कुछ जानने और समझने को मिला ! उनका कहना था कि वो ऐसी जगह में रहते हैं जहाँ इस तरह की कोई सुविधाएं नहीं हैं, पर किस्मत से  उन्हीं के बीच में एक महिला रहती हैं जो  आँगनवाड़ी केंद्र में काम करती हैं और वो समय समय पर सभी तरह की लाभदायक जानकारियां मुहैया करवाती रहती हैं ! उनका कहना था कि सभी लोग उनके जैसे खुशकिस्मत नहीं होते कि सही समय पर सही जानकारी मिल जाये, और इसी कारण से उन्हें दुखों का सामना करना पड़ता है !  

भले ही वो लोग पढ़े लिखे ना हो, पर उन्हें पता है कि मीज़ल्स क्या होता है, कैसे होता है, इससे बचने के क्या उपाय हैं और कैसे इससे मुकाबला किया जा सकता है ! पर उन लोगों के मन में एक उदासीनता भी थी, कि कई बार पैसे ना होने के कारण, वो सही समय पर अपने बच्चों का ढंग से इलाज ना करवा पाने में सक्षम नहीं हो पाते  !
जुकाम होने पर उसे साधारण मानकर डॉक्टर के पास जाते हैं तो पता चलता है कि उसे तो मीज़ल्स जैसी बड़ी बीमारी की शुरुआत हो रही है ! तो अब ऐसे में अचानक से वो पैसा कहाँ से लायेंगे महंगी दवाइयों के लिए ? इसलिए उनकी कोशिश रहती है कि जब वैक्सिनेशन होता है या दवा पिलवायी जाती है, तो वो लोग उसी का लाभ उठायें ! 

इस बीमारी की शुरुआत अमेरिका में हुई थी, पर आज यही बीमारी देश के हर कोने में अपनी पहुँच बना चुकी है और मासूम बच्चों की जिंदगियों को अपनी चपेट में लेने लगी है ! इसमें निमोनिया, कनजक्तिवाईटिस, तेज़ जुकाम और बुखार से शुरुआत होती है, और बढ़ते बढ़ते ये जानलेवा हो जाती है ! अब तक दुनिया में कई लाख बच्चों की मृत्यु हो चुकी है !
बच्चों के स्वस्थ रहने में हमारा यानि समाज का भी बहुत अहम् योगदान होता है ! माता-पिता और परिवार से तो जितना बन पड़ता है, वो हर संभव और सफल प्रयास करते हैं अपने बच्चे के बेहतर और उज्जवल भविष्य के लिए, पर कहीं ना कहीं, कोई ना कोई कमी रह जाने के कारण ही कई बार गम की अँधेरी रातें सामने आ जाती हैं जो हमारे बच्चों को हमसे दूर कर देती हैं !

बच्चे ही तो भावी कर्णधार और देश का भविष्य होते हैं ! तो ऐसे में सरकार, समाज और मीडिया को अपना पूर्ण सहयोग और योगदान देना चाहिए कि बच्चे भी स्वस्थ और सुरक्षित रहें और देश का परचम भी लहराता रहे ! पर शायद हमारे देश की स्थिति ऐसी नहीं है ! यहाँ पर सरकार जीडीपी का सिर्फ  0 .9 फीसदी हेल्थकेयर पर खर्च करती है जबकि विश्व औसत 5 फीसदी का है ! चूँकि यहाँ पर इलाज का 75 फीसदी खर्च खुद मरीज को वहन करना पड़ता है, इसलिए निजी क्षेत्र का महंगा इलाज हर साल 3.9 करोड़ लोगों को गरीबी के बाड़े में धकेल देता है ! जनस्वास्थ्य पर खर्च करने के मामले में 175 देशों की सूची में भारत 171 वें स्थान पर है ! परन्तु योजना आयोग ने 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अंत अर्थात् 2017 तक स्वास्थ्य के मद में जीडीपी का ढ़ाई फीसदी खर्च करने का सुझाव दिया है !
दरासल, स्वास्थ्य के मोर्चे पर भारत को दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है ! एक तरफ गरीब वर्गों में संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ रहा है, जिससे सबसे अधिक नवजात शिशु और बच्चे प्रभावित होते हैं क्योंकि उनकी रोग - प्रतिरोधक क्षमता ठीक से विकसित नहीं हो पाती ! वहीँ दूसरी तरफ शहरों में एक बड़ी आबादी मधुमेह, पक्षाघात, ह्रदय रोग और कैंसर जैसी जीवन शैली सम्बन्धी बीमारियों की चपेट में आती जा रही है ! 
इसी कोशिश को आगे बढ़ाते हुए कानपुर की एक गैर-सरकारी संस्था "संस्कार" ने बीड़ा उठाया है गाँव की हर महिला को शिक्षित करने का और बच्चों को सुसंस्कृत करने का ! संस्था का मानना है कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा अधिकतम परेशानियों को मूल से नष्ट किया जा सकता है ! यदि माँ-बाप अंगूठा छाप ना होकर कुछ हद तक पढ़े-लिखे होंगे तो इस तरह की समस्याओं को समझ सकेंगे, उनके निदान के उपायों में रूचि लेंगे और आगे बढ़कर परिवार, समाज और देश के हित का कार्य करेंगे !  
इतना ही नहीं, मीडिया, जिसे देश के चौथे स्तम्भ के रूप में  जाना जाता है, वो भी अहम् भूमिका निभा रहा है ! मीडिया नियमित टीकाकरण व स्वास्थ्य देखभाल के लिए जनता में जागरूकता फैला रही है । फिर चाहे वो रेडियो हो या टीवी, या फिर इन्टरनेट के माध्यम से ! इसके अलावा ट्रेडिशनल मीडिया भी अच्छा सहयोग दे रहा है, जैसे नुक्कड़ नाटक, फोक प्ले, डोक्यु - ड्रामा, आदि  !  इन सभी माध्यमों से देश में महिलाओं को इस विषय में ज्ञान दिया जा रहा है जिससे सुरक्षित प्रसव व मातृ एंव शिशु की देखभाल सही रूप से हो सकेगी।

मीडिया की इसी सहभागिता में शामिल है NDTV INDIA की मुहिम "जीने की आशा", जो लम्बे अरसे से सतत् लोगों के स्वास्थ्य के लिए उन्हें जागरूक बनाती आई है ! खासकर महिलाओं और बच्चों को होने वाली परेशानियों से उन्हें अवगत करवाना और उनका निवारण बताना इस मुहिम का मुख्य लक्ष्य है ! यह गाँव के घर - घर में जाकर लोगों की सेवा कर उनके दिलों में अपना ख़ास स्थान बनाने में कामयाब रही है ! 

इसके अलावा भी दूसरे बहुत से उपाय हैं, जैसे जिन जगहों पर टीवी और दूसरे माध्यम नहीं पंहुचें हैं या फिर लोग पढ़ना - लिखना नहीं जानते, वहां पर मीडिया जानकारी मुहैया करवाने के दूसरे साधनों का प्रयोग कर सकता है, जैसे उचित दिन घर-घर जाकर पोलिओ या अन्य टीकों की जानकारी देना, डुग्गी पिटवाकर सूचना देना या फिर सूचना केंद्र खुलवाकर और गाँव में पर्चे बंटवाकर ! शुरुआत में गाँव के अशिक्षित लोगों तक पंहुचकर उन्हें इसकी उपयोगिता के बारे में समझाने से भी वो लोग फिर अपनी तरफ से केन्द्रों में आने की शुरुआत करेंगे क्योंकि सभी अपने बच्चों को स्वस्थ और खुश देखना चाहते हैं ! 
ये सभी तरीके वहां कारगर साबित होंगे जहाँ पर लोग वर्तमान समय की विषम परिस्थितियों से अनभिज्ञ हैं, और अपनी समस्याओं को सामने लाने में हिचकिचाते हैं ! जिस तरह से आज-कल हर तरफ अनेक तरह के बुखारों का प्रकोप बढ़ रहा है, तो ऐसे में लोगों में बुखार के बारे में जानकारी देना, उसके दुष्प्रभाव के बारे में समझाना और उससे बचने के उपायों को बताना, इसमें मीडिया, आंगनवाड़ी केंद्र और सरकार अहम् भूमिका निभा सकते हैं !

मीडिया के अलावा लोकसंत आसारामजी बापू की सेवा समीतियाँ भी अपने चल - चिकित्सालयों के माध्यम से देश के हर गरीब तबके के लोगों तक अपनी सेवा पंहुचा रही हैं ! फिर चाहे वो टीकाकरण की सुविधाएं हो या किसी महामारी के फैलने की समस्या हो या फिर और किसी तरह की बड़ी परेशानी हो !  इनका मकसद बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना है।

इतना ही नहीं, यूनिसेफ भी बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार और गरीबी के खिलाफ लड़ाई में साथ दे रहा है । इनका मकसद बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना है।

देश, सरकार, राज्य और लोगों का लक्ष्य यही होना चाहिए कि बच्चे जो देश के भावी कर्णधार हैं, उनका हर हाल में रक्षण और संरक्षण हो, फिर चाहे वो अमीर हो या गरीब ! हमें उन चेहरों की तरफ हाथ बढ़ाना चाहिए, जो आशा और उम्मीद के साथ हमारी तरफ देखते हैं और उन्हें अपनी दुनिया में लाने की कोशिश करनी चाहिए, एक ऐसी दुनिया जो उनकी निराशामयी और दर्दभरी दुनिया से बेहतर, खूबसूरत और संभावनाओं से भरी है ! 
हमारा मदद का एक हाथ किसी की दुनिया बदल सकता है ! एक बच्चा जो किताब के अभाव में पढ़ नहीं पा रहा, एक मरीज जो पैसों के अभाव में इलाज नहीं करवा पा रहा और मौत को सहर्ष स्वीकार कर लेता है और एक खिलाड़ी जो प्रतिभा होते हुए भी खेल नहीं पा रहा, हमारे सहयोग से इनका जीवन बदल सकता है ! जीने की एक नयी उम्मीद जाग सकती है, जो अंततः हमें ख़ुशी और संतोष दे जाएगी !

हम अपनी सीमाओं में रहते हुए भी मदद के छोटे - छोटे पुल खड़े कर सकते हैं, जिन पर चलकर अभावों और दुखों की दुनिया में जीते लोग मुस्कराहट के संसार में आ सकें ! और हमें ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि ज़िन्दगी में हम खुद भी छोटे - बड़े कामों के लिए अनगिनत लोगों की मदद से ही अपने मुकाम तक पंहुचे हैं ! 







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