22 Apr 2012

बस्ती-बस्ती की माइक्रो प्लानिंग, बच्चे-बच्चे पर नजर

Article contributed by Mr. Pankaj Shukla, City Bureau Head,  Navdunia, Bhopal, Madhya Pradesh


बालाघाट। टीकाकरण में प्रदेश का आदर्श जिला साबित हुआ बालाघाट असल में कुशल प्रशासन का एक बेहतरीन उदाहरण है। सम्पूर्ण टीकाकरण की ओर कदम बढ़ाते हुए यहाँ कुछ ऐसा नहीं किया गया जो अन्य जिलों में किया जा सकता हो। जिले को यह उपलब्ध्ाि सामान्य काम को विशिष्ट तरीके से करने पर मिली है। यहाँ हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभा रहा है। बस्ती के अनुसार माइक्रो प्लानिंग की गई और बच्चे-बच्चे पर नजर रखी गई। इस तरह निगरानी का एक ऐसा तंत्र बना जो हर कमी को पकड़ने में सक्षम है। 
बालाघाट की इस उपलब्ध्ाि में सहायक हुई एएनएम, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा ने इस सफलता के राज साझा किए। महिला एवं बाल विकास विभाग अध्ािकारी नीलिमा तिवारी ने बताया कि टीकाकरण का लक्ष्य हो या कुपोषण या बाल संजीवनी अभियान, हमने इसे अलग-अलग काम मानने की जगह आपसी सहयोग का प्रोजेक्ट बनाया। स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक-दूसरे की जानकारियों और सूचनाओं को साझा किया और उनका उपयोग करना शुरू किया। मसलन, आँगनवाड़ी केन्द्र में आने वाली महिलाओं से गाँव में गर्भवती महिला की जानकारी मिलने पर तुरंत आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम को बता दिया जाता है। वे अपने-अपने रजिस्टर में गर्भवती महिला का नाम-पता दर्ज कर लेते हैं। इसके बाद आँगनवाड़ी सहायिका, कार्यकर्ता, एएनएम और आशा की जिम्मेदारी है कि समय पर गर्भवती महिला की नियमित जाँच, टीकाकरण, संस्थागत प्रसव और बच्चों के टीकाकरण का ध्यान रखे। 
यह एक आदर्श व्यवस्था है और बालाघाट में अमूमन इसका पालन हो रहा है। मगरदर्रा की एएनएम ममता सर्राटे इस बात की पुष्टि करती हैं। वे बताती हैं कि पूरे गाँव की नहीं बल्कि हर टोले के मुताबिक माइक्रो प्लानिंग की गई। इसमें गाँव की जनसंख्या, गर्भवती महिला और शिशु, टीकाकरण की स्थिति, टीके की संख्या आदि की जानकारी दर्ज की जाती है। फार्मेट वही हैं जो शासन ने उपलब्ध्ा करवाए हैं। विशेष केवल इतना है कि विकसित तंत्र अपना काम करता रहता है। आँगनवाड़ी कार्यकर्ता भूमेश्वरी पटले बताती हैं कि आशा कार्यकर्ता को संस्थागत प्रसव के 150 रूपए मिलते हैं अत: वे गाँव की मूल निवासी होने का फायदा उठाती हैं और गर्भवती महिला की जानकारी मिलते ही उसका नाम रजिस्टर में लिख लेती हैं। इस रजिस्टर में नाम आने के बाद से बच्चे के पूर्ण टीकाकरण तक उस पर निगाह रखी जाती है। टीकाकरण के एक दिन पहले सहायिका और आशा कार्यकर्ता रजिस्टर में दर्ज नाम-पते के अनुसार घर-घर जा कर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सूचना देते हैं। अगले दिन उन्हें बुला कर लाते हैं। आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम दोनों के पास अपने रजिस्टर होते हैं तो पता चल जाता है कि कौन आया है और कौन चूक गया है।  एक टोले में सामान्यत: 6-7 बच्चों को ही टीके लगना होते हैं तो उन पर व्यक्तिगत नजर रखना आसान होता है। अगर कोई रह जाता है तो अगले सप्ताह बुला कर लाया जाता है। यह तो उन क्षेत्रों की व्यवस्था हैं जहाँ सड़क है और पहुँच संभव है। पहुँचविहीन इलाकों के लिए अलग इंतजाम हैं। 
चूके टोलो में हल्ला बोल
बालाघाट पहाड़ी जिला है और यहाँ के दूरस्थ इलाकों में पहुँचना टेढ़ खीर है। शहर से सटे इलाकों में तो टीकाकरण आसान है लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों से बच्चों को टीकारण के लिए नहीं लाया जाता। बालाघाट में बिरसा, बैहयर, परसवाड़ा, लांजी तथा लामटा के छह गाँव ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ सहज आवाजाही नहीं हो सकती। जिला टीकाकरण अध्ािकारी डॉ राकेश पंड्या बताते हैं कि दूरस्थ क्षेत्रों में टीकाकरण के लिए खास मुहिम चलाई जाती है। यह मुहिम उन माह में होती है जब पलायन कर गए लोग अपने घर आते है। मसलन, होली, फसल कटाई और फसल बुआई के समय। इस दौरान पहले दिन स्थाई व्यक्ति से मुनादी करवा कर सूचना दी जाती है। अगले दिन 2 या 3 गाड़ियों में सात-सात कर्मचारियों का दल एक-एक टोले में पहुँचता है। वहाँ घर-घर जा कर गर्भवती महिलाओं की जानकारी लेते हैं, उन्हें टिटनेस का टीका लगाती है और बच्चे के जन्म का आकलन कर आशा कार्यकर्ता या आँगनवाड़ी सहायिका को संस्थागत प्रसव के लिए तैनात कर दिया जाता है। घर-घर जा कर यह पूछ भी लिया जाता है कि किसके घर में बच्चा है। इसतरह सूचना जुटाई जाती है। यह कैचअप राउंड सालभर में चार बार किया जाता है। इस अभियान के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से अलग बजट आवंटित है। 
एक दूसरे पर नजर 
 कहने-सुनने में सब अच्छा लगता है लेकिन बड़ा सवाल है कि यह तंत्र या व्यवस्था कायम कैसे रह पाती है? यह जिज्ञासा इसलिए भी है कि समान व्यवस्था दूसरे जिलों में क्यों लागू नहीं है? गौर करें तो पाएँगे कि बालाघाट में एक-दूसरे पर नजर रखने का तंत्र पारदर्शिता से लागू है। सीएमओ से लेकर सुपरवाइजर तक सभी लोगों के लिए दौरे करना अनिवार्य है और निरीक्षण के उपरांत रिपोर्ट भी देना पड़ती है। मप्र नियमित टीकाकरण सत्र अनुश्रवण प्रपत्र नामक इस रिपोर्ट से सम्पूर्ण निगरानी संभव है। जिला टीकाकरण अध्ािकारी नियमित इन रिपोर्ट का अवलोकन और समीक्षा कर चूक वाले क्षेत्रों का प्रबंध्ा करते हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग भी इस मुहिम में शामिल होता है। उनके सुपरवाइजर और अध्ािकारी आँगनवाड़ी के निरीक्षण के दौरान टीकाकरण की स्थिति पर नजर रखते हैं और जरा खामी मिलने पर पत्र लिखने या बैठक का इंतजार नहीं करते बल्कि टीकाकरण अध्ािकारी को फोन पर सूचना दे देते हैं। 


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