राजस्थान पत्रिका |
31 अक्तूबर 2014, कोटा, राजस्थान
पृष्ठभूमि और मूल आधार
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किशोरावस्था
व्यक्ति के जीवन का वह अहम पड़ाव होता है जो कि वयस्क जीवन मे कदम रखने के लिहाज
से काफी महत्वपूर्ण है। यह जीवन का दूसरा दशक होता है जिसमें लड़के/लड़कियाँ अपने
जीवन में व्यापक शारीरिक मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक बदलाव का अनुभव करते हैं। यह
उम्र बेहतर अवसरों के लिए काफी महत्वपूर्ण है जिसमें युवा न सिर्फ अपनी क्षमता को
विकसित करते हैं, बल्कि बाल्यावस्था
में सीखे गये मूल्यों और उस दौरान सीखे गये कौशल का इस्तेमाल करते हैं, जिसके जरिए उन्हें एक जवाबदेह किशोर होने में
मदद मिलता है।
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चूंकि यह समय
उनके जीवन में व्यापक बदलाव का दौर होता है, इसलिए किशोरों को इस दौर में ऐसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो उनके नियंत्रण से बाहर होती हैं। ये
चुनौतियाँ उनके जीवन में व्याप्त असमानता, संस्कृति, लिंग, वैश्वीकरण, और बढ़ती बेरोजगारी और गरीबी से जुड़ा हो सकती हैं।
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युवा विशेष रूप
से लड़कियां जो कि गरीब या हाशिए पर रह रही होती हैं बहुत कम ही अपनी माध्यमिक स्तर
की शिक्षा पूरा कर पाती हैं। इस तरह के बच्चों का शारीरिक शोषण, उत्पीड़न और हिंसा की संभावना ज्यादा होती है।
अक्सर उन्हें घरेलू कामगार और बाल विवाह का सामना करना पड़ता है। विकास शील देशों में,
गरीब वर्ग की किशोर लड़कियों की 18 वर्ष से कम उम्र मे शादी की संभावना इसी उम्र
की संपन्न देशों की लड़कियों की तुलना में तीन गुना ज्यादा होती है। जिन लड़कियों की
शादी कम उम्र में होती है उनमें समय से पूर्व गर्भधारण के नकारात्मक चक्र में पड़ने
का खतरा अधिक होता है। इसके साथ मातृ मुत्यु दर और उनकी संतानों के कुपोषण का खतरा
भी ज्यादा होता है। लड़कियां लड़कों की तुलना में ज्यादा घरेलू और/ यौन हिंसा की
शिकार ज्यादा होती हैं, और लड़कियों में
एचआईवी इंफेक्शन का जोखिम और उसकी चपेट में आने की का खतरा ज्यादा होता है।
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हालांकि पूरे
संसार में किशोर सामान्यतः पहले की तुलना में आज ज्यादा स्वस्थ हो रहे हैं,
बावजूद इसके उन्हें कई तरह के स्वास्थ्य जोखिमों
का सामना करना पड़ता है जिसमें चोट लगना, खान पान की कुव्यवस्था, कुछ हद तक
उत्पीड़न और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का सामना करना होता है। ऐसा आकलन
किया गया है कि पांच में से एक किशोर को मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार से जुड़ी
समस्या का सामना करना होता है।
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भारत में,
56 फीसदी किशोर लड़कियाँ एनीमिया और खराब मातृ-स्वास्थ्य
की शिकार हैं। दो करोड़ (20 मिलियन)
लड़कियां (14-17 वर्ष के आयु
वर्ग में) अब भी स्कूली शिक्षा से बाहर हैं और 42 फीसदी लड़कियों की कानूनी उम्र 18 वर्ष से पहले ही शादी हो जाती हैं।
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आज पूरी दुनिया
में 1.2 अरब (बिलियन) किशोर हैं
और इनमें से 90 फीसदी विकासशील
देशों में रहते हैं। लेकिन उनके विषय में
उतनी सूचनाएं उपलब्ध नहीं है जितनी समाज के अन्य हिस्से के बारे में हैं: हम
किशोरों की दशा, आदतों, उम्मीदों और सपनों के बारे में बहुत कम जानते
हैं।
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यह जीवन का वह
पड़ाव है जिसपर हमें और ध्यान देने और अधिक से अधिक संसाधन खर्च करने की जरूरत है ताकि हम आगे चलकर इसके आर्थिक और
सामाजिक प्रभाव से बचाया जा सके जिसके कारण एक ऐसी पीढ़ी तैयार होगी जो समाज को
पूरा योगदान देने में असमर्थ होगी।
किशोरों के मुद्दे पर ध्यान देने के लिए उठाए गए कुछ ताज़ा कदम
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किशोर लड़कियों
से जुड़े मुद्दों को महत्व देने के लिए यूनिसेफ
ने महाराष्ट्र में ‘दीपशिखा’ कार्यक्रम शुरू किया है।,यह वह प्रयास है जिसका उद्देश्य समाज के गरीब
तबके की लड़कियों और युवतियों को जो ग्रामीण इलाकों में या शहरी मलीन बस्तियों में
रह रही है उनको सशक्त बनाने की जरूरत है। इसके जरिए उन मुद्दों पर ध्यान दिया जता
है जिसके लड़कियां पढ़ लिखकर सशक्त होंगी, जो कि आगे चलकर उन्हें यह साहस देगा ताकि वे ‘ समय पूर्व शादी को मना कर सकें
और उनके अंदर निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो।
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महाराष्ट्र में
दीपशिखा कार्यक्रम के पहले चरण में (2008-11 के बीच ) इसके जरिए 64,000 किशोरियों को 2,238 समूहों के अंतर्गत इसके
दायरे में लाया गया है।
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सशक्तीकरण इस
पूरे कार्यक्रम की आत्मा है जिसे बारक्लेज़ बैंक ने फंड दिया है, और इसे महाराष्ट्र सरकार, स्पर्श ट्रेनर्स’ अलायंस तथा स्थानीय गैर
सरकारी संगठनों (एनजीओ) के सहयोग से चलाया जा रहा है।
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बॉलीवुड की
नायिका प्रियंका चोपड़ा यूनिसेफ की सद्भावना दूत या गुडविल अंबैस्डर भी हैं,
वे पिछले आठ वर्षो
से किशोर लड़कियों के इस कार्यक्रम से जुड़कर न सिर्फ काम कर रही हैं बल्कि उनके
सशक्तीकरण और उपयोगी जीवन-कौशल के विकास में अहम योगदान दे रही हैं।
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इस कार्यक्रम का
पहला चरण सफलता पूर्वक पूरा कर लिया गया है। वर्ष 2012 से 2015 के बीच बारक्लेज़
का लक्ष्य है कि ब्राजील, मिस्र, भारत, पाकिस्तान, यूगांडा और जांबिया में 74,000 किशोरों को लाभ पहुंचे। यह कार्यक्रम बारक्लेज़ की उस महत्वाकांक्षा
का हिस्सा है जिसके ‘‘वर्ष 2015 तक 50 लाख (यानी 5 मिलियन युवाओं का भविष्य’’ बदलना है।
मीडिया की भूमिका
मीडिया ने अक्सर जन स्वास्थ्य
के क्षेत्र में किये जा रहे काम और पहल के संबंध में लोगों को जागरूक करने में अहम
भूमिका निभाई है, इसलिए मीडिया की
इस क्षमता का उपयोग किशोरों से जुड़े मुद्दों को आगे बढ़ाने और इसको मजबूत करने
में किया जा सकता है। यह बात विशेष रूप से सही है कि क्षेत्रीय मीडिया जिनकी जनता
के बीच जमीनी स्तर पर व्यापक पहुंच है, उनका इस्तेमाल लोगों को जोड़ने और इसका लाभ देने के लिए किया जा सकता है।
इस वर्तमान प्रयास का
उद्देश्य है कि मीडिया के साथ मिलकर एक संयुक्त रणनीति बनायी जाये और उन्हें जनता
से जुड़े मसलों के लिए साथ लिया जा सके ताकि इसके जरिए किशोरों से जुड़े मुद्दों
को आगे बढ़ाने और इन मसलों पर काम करने के लिए एक बेहतर वातावरण बने, जिससे उनको
महत्व मिल सके। इस उद्देश्य से, क्षेत्रीय मीडिया
को विभिन्न कार्यशालाओं (तीन) की श्रृंखला के जरिए जोड़ा जा सके ताकि किशोरों के
मसलों को विभिन्न संभावित मंचों से आगे बढ़ाया जाए और उन मसलों को मीडिया के समक्ष
रखा जाए।
यूनिसेफ और नागरिक
फांउडेशन की आपसी सहभागिता के तहत, नागरिक फांउडेशन अधिक
से अधिक लोगों तक पहुंचने में वी सैट तकनीक 30 जिलों के मीडिया कर्मियों को इस विमर्श में जोड़ने और
क्षमता बढ़ाने के काम में उपलब्ध कराएगा, जो कि किशोरों से जुड़े मुद्दों पर
आयोजित हो रहे हैं। आईसीटी टेक्नॉलजी बेहतर प्लेटफार्म मुहैया कराने के साथ ही
राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय और जिला
स्तर मीडिया कर्मियों को एकसाथ जोड़ेगी। इस प्रकार की पहल के जरिए पहला काम दिल्ली,
कोटा, राजस्थान के मीडिया के बीच लिंक बनाने का होगा।
किशोरियों से जुड़े मसलों को बेहतर कवरेज देने के लिए मीडिया क्या कर सकता है?
किशोरों से जुड़ी
समस्याओं को रेखांकित करने के क्रम में मीडिया निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष ध्यान
दे सकता है:
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डेटा संग्रह पर विशेष
ध्यान दिया जाए, ताकि किशोरों से
जुड़े मसलों के प्रति समझदारी बढ़े और उनका अधिकार मिल सके।
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किशोरों के लिए
शिक्षा व प्रशिक्षण के अवसरों को और रेखांकित किया जाए ताकि वे खुद को और अपने
जीवन को गरीबी से बाहर लाने में सहायक बन सकें।
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किशोरों को अपनी
बात रखने, अपना विचार देने के लिए
भागीदारी के अवसर का और अधिक विस्तार किया जाए।
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किशोरों से जुड़े
मुद्दों को अपने नियमित कॉलम, कार्यक्रमों में
पर्याप्त जगह दी जाए।
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किशोरों को अपने
विचार को आगे बढ़ाने के लिए बेहतर प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जाए (टीवी/रेडियो)
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उनके अपने लेखन
में किशोरों के मसलों को मानवीय रुचि की सामग्री के रूप में ज्यादा जगह दें
(उदाहरण के अमर उजाला के आलेख संलग्न हैं)
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वैसे कानून,
नीतियां और कार्यक्रमों को हाइलाइट किया गया
जाए जो किशोरों से जुड़े हुए हैं और उनके अधिकारों व हितों को संरक्षित करते हैं। साथ ही उन्हें
जरूरी सुविधाओं को पाने के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं।
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वैसी खबरों की
कवरेज को, जो इस मुद्दे से जुड़ी हुई हैं और जिनका रूख सकारात्मक हो, अपने अखबार/चैनल में बढ़ावा दिया जाए।
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समाचार कक्ष में
संपादकों से मिलकर किशोरों से जुड़े मुद्दों और इनकी समस्याओं को अधिक जगह और अधिक
महत्व दिलाने के लिए काम करें।
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मुख्य धारा के चैनलों
में इन खबरों को प्रमुखता से रखे जाने का रास्ता निकालें।
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यह देखें कि किशोरों
के मुद्दों पर नये-नये स्टोरी आइडिया, अलग दृष्टिकोण से और अलग तरीकों से कैसे रखे जाएं ताकि पाठक और इससे प्रभावित
समुदाय इसको पढ़े और इसके महत्व को समझे।
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स्वास्थ्य बीट से
जुड़े स्रोतों के लिए मजबूत नेटवर्क बनाएं। इसकी खबर रखें कि इस मसले से जुड़ी अतिरिक्त सूचना पाने और
तथ्यों को पुष्ट करने के हाल के डेटा/रिपोर्ट्स/अध्ययन को कैसे हासिल किया जा सके।
इस कार्यशाला का लक्ष्य और अनुमानित परिणाम
इस कार्यशाला का उद्देश्य
मीडिया को किशोरों के मुद्दों पर सूचना से परिपूर्ण बनाने के साथ ही जागरूक करना
है, और इस सहभागिता की बदौलत
उनके लिए जनसंख्या के एक बड़े हिस्से तक अपनी पहुँच बनानी है। ऐसी उम्मीद है कि
इसके जरिए निम्नलिखित लक्ष्य तक पहुंचेंगे।
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कम से कम जमीनी
स्तर पर काम करने वाले 30 पत्रकारों और
ब्लॉगरो की वीडियो कांफ्रेसिंग, वी सैट सेटेलाइट
पर आधारित तकनीक के जरिए उनके क्षमता में बढ़ोतरी करना है।
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यूनिसेफ
सेलिब्रिटी के वीडियो (जिसमें प्रियंका चोपड़ा को दिखाया गया है) के जरिए बच्चों
और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर और अधिक सार्थक ढंग से परिचर्चा को आगे बढ़ाया जा
सके।
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प्रादेशिक स्तर
पर प्रशिक्षित और समर्पित पत्रकारों का एक नेटवर्क तैयार करना जो कि सतत रूप से इस
मसले पर पूरा ध्यान केंद्रित किया रहे।
अपेक्षित परिणाम
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वरिष्ठ मीडिया
कर्मी जो राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर के महत्वपूर्ण मीडिया संस्थानों (राजस्थान
के) किशोरों से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को समझते हैं और इन मसलों पर काम करने के
लिए पूरी तरह समर्पित हैं।
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परिचर्चा के बाद
मासिक कॉलम/रेडियो कार्यक्रम/टीवी कार्यक्रमों में किशोरों से जुड़े महत्वपूर्ण
मुद्दों पर प्रकाशित आलेखों का संकलन।
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इस पूरे
प्रोजेक्ट का अच्छे तरीके से डॉक्यूमेंटेशन पूरा करना और इसे वीडियो कॉंफ्रेसिंग
नेटवर्क जो कि देश के सुदूर इलाकों तक फैला हुआ है को नवीन सैटेलाइट आधारित तकनीक
के जरिए पहुंचाना और इसको विस्तार देना।
कार्यक्रम का अवलोकन
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यूनिसेफ नागरिक फाउंडेशन
के साथ मिलकर स्थानीय मीडिया के महत्व को विस्तार देते हुए, प्रभावी और युवा समूहों समाज के उन तबकों और उन हिस्सों तक
पहुंच बना रहा है जो कि अभी तक संसाधनों से वंचित और असुविधा ग्रस्त हैं और इसी
उद्देश्य से कोटा में अक्तूबर 31 को कार्यशाला का
आयोजन किया गया है।
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नागरिक फाउंडेशन
इस बात को सुनिश्चित करेगा कि क्षेत्रीय मीडिया इस कार्यशाला में भागीदारी करे
ताकि सूचनाओं का संप्रेषण सही तरीके से, गहनता से हो सके और बच्चों एवं महिलाओं से जुड़े मसलों का सही रिपोर्टिंग हो।
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कार्यशाला का
आयोजन कोटा, राजस्थान में अक्तूबर 31,
2014 को किया गया है।
यूनिसेफ के विषय में
यूनिसेफ प्रत्येक बच्चे
के अघिकार और उनकी बेहतरी को आगे बढ़ाने के लिए हर काम करता है जो उनके लिए जरूरी
हो। अपने सहभागियों के साथ मिलकर, हम दुनिया के 190 देशों में और क्षेत्रों में काम करते हुए अपनी
प्रतिबद्धता को व्यावहारिक कार्य में परिवर्तित करते हैं। हमारा ध्यान मुख्य रूप
से समाज के उन हिस्सों तक पहुंचने का होता है और इसके लिए हम विशेष प्रयास करते
हैं ताकि सर्वाधिक जोखिम वाले समाज और बच्चों तक पहंच सकें, और इसका प्रत्येक जगह पर सभी बच्चों को मिल सके।
यूनिसेफ के कार्य के विषय
में अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट www.unicef.org और www.unicef.org/india पर संपर्क कर सकते हैं।
नागरिक फाउंडेशन के बारे में
नागरिक फाउंडेशन एक
पंजीकृत सोसाइटी है। यह फाउंडेशन स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और
बच्चों की प्रगति, महिलाओं एवं
बुजुर्गों के लिए काम करने के साथ ही उन युवाओं को भी संरक्षण देता है और रास्ता दिखाता है जो रोजगार की तलाश में हैं।
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