Left to Right: Raghuveer Singh, Health Supervisor, District Guna,Preetam and Deshraj after getting vaccinated for Measles at Block Medical office, Guna, Madhya Pradesh |
Story contributed by Mr. Pankaj Shukla, City Bureau Head, Navdunia, Bhopal , Madhya Pradesh
भोपाल। यह फोटो है पाँच साल के देशराज का, जो अपने पिता प्रीतम की गोद में है। उनके पास है रघुवीर सिंह भील। गुना जिले के चाचौडा ब्लॉक के स्वास्थ्य सुपरवाइजर। प्रीतम का कहना है कि अगर रघुवीर सिंह नहीं होते तो उसके दोनों बेटे देशराज और रोड़ेलाल आज जीवित नहीं होते। ये रघुवीर सिंह ही हैं जिन्होंने खसरा पहचान कर उनके बीमार बच्चों का जबर्दस्ती इलाज करवाया और टीका लगवाया। अब प्रीतम खुद इस बात का ध्यान रखता है कि किसी भी मझरे टोले में कोई बच्चा टीका लगवाने से छूट ना जाए।
खसरा या छोटी माता आज भी गँावों में बच्चों की जान ले रहा है। लोग बच्चों को टीका लगवाना नहीं चाहते क्योंकि वे मानते हैं कि इससे माता कुपित हो जाएगी। आम कस्बों-गाँवों की यह मानसिकता है तो फिर आदिवासी इलाकों की दशा का क्या कहा जाए। गुना जिले के आदिवासी इलाकों में दो साल पहले तक खसरा फैला था। कई टोलों में बच्चे बीमार हुए थे। कितने की मृत्यु हुई यह तो किसी को नहीं पता लेकिन एक शख्स है जिसके कारण कई लोगों को यह पता है कि उनके बच्चों की जान बच गई। यह शख्स है रघुवीर सिंह भील। ब्लॉक मेडिकल ऑफिस में स्वास्थ्य सुपरवाइजर रघुवीर सिंह जाति से भील हैं।
जब वे स्वास्थ्य कार्यकर्ता बने थे तो नेसकला के साथ ऊँदरी का पुरा टोले में खसरा फैला था। वे बताते हैं कि लोगों ने बच्चों को नहलाना बंद कर दिया था। घरों के बाहर नीम के पत्ते टाँग दिए थे। अनपढ़ आदिवासी किसी भी तरह के इलाज से ना तो परिचित थे और ना इसके लिए तैयार थे। रघुवीर सिंह को जब पता चला कि टोले के अधिकांश बच्चे बीमार हैं तो वे सभी के घर गए और लोगों को समझाया कि वे बच्चों का इलाज करवाएँ नहीं तो उनकी जान चली जाएगी। उन्होंने भील समाज के अपने जाति बंधुओं को समझाया कि यह संक्रामक रोग है तो ऐसे उपाय करो जिससे बच्चों में संक्रमण न फैले। उन्हीं की पहल पर स्वास्थ्य विभाग की एक टीम ने आकर बच्चों का इलाज किया। बात जब टीका लगाने की आई तो ग्रामीण अड़ गए। उन्होंने इंजेक्शन लगवाने से इंकार कर दिया। फिर रघुवीर सिंह को आगे आना पड़ा। उन्होंने समझाया और गारंटी ली कि बच्चों को कुछ हुआ तो उनकी जिम्मेदारी। आखिरकार बच्चों को टीका लगा और आज बच्चे स्वस्थ्य हैं।
ऐसा ही एक बच्चा देशराज हमें मिला ऊँदरी का पुरा के स्कूल में। कक्षा तीसरी में पढ़ रहे देशराज को भी खसरा हुआ था। तब उसके पिता प्रीतम ने रघुवीर सिंह के कहने पर ही उसे खसरे का टीका लगाया गया था। प्रीतम कहते हैं कि तब हमें कुछ पता न था। हम तो मानते थे कि माता का प्रकोप है। रघुवीर सिंह ने जिम्मा लिया तो टीका लगवाया। इसके पहले भी उन्हीं के कहने पर बच्चों को टीका लगा था और वे ठीक हुए। आज प्रीतम खुद इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनके आसपास के टोलों के लोग बच्चों को टीका लगवाएँ।
गौरतलब है कि खसरा वायरस से होता है । इसके लक्षण हैं - बुखार, खॉंसी, नाक का चलना, आँखे लाल होना और सारे शरीर पर दाने (मैक्यूलोपैपूलर, इरिथ्रोमेटस) आना और बच्चों में घातक एनसिफेलोपैथी का होना। यह हवा के द्वारा फैलता है। इसका शुरूआती लक्षण 3-4 दिन तक तेज बुखार आना है। लाल दाने पहले सिर पर होते हैं। फिर सारे शरीर पर हो जाते हैं। इसमें खुजली भी होती है। सौ में से 30 ज्ञात मामलों में खसरा गंभीर हो जाता है। यह 9 माह से 10 साल तक की उम्र के बच्चों में तेजी से फैलता है। इसका कोई इलाज नहीं है। टीकाकरण ही इससे बचाव का एकमात्र तरीका है। खसरे की पहचान के बाद बच्चे को दो दिनों में विटामिन 'ए" की दो खुराक दी जाती है।
खसरा या छोटी माता आज भी गँावों में बच्चों की जान ले रहा है। लोग बच्चों को टीका लगवाना नहीं चाहते क्योंकि वे मानते हैं कि इससे माता कुपित हो जाएगी। आम कस्बों-गाँवों की यह मानसिकता है तो फिर आदिवासी इलाकों की दशा का क्या कहा जाए। गुना जिले के आदिवासी इलाकों में दो साल पहले तक खसरा फैला था। कई टोलों में बच्चे बीमार हुए थे। कितने की मृत्यु हुई यह तो किसी को नहीं पता लेकिन एक शख्स है जिसके कारण कई लोगों को यह पता है कि उनके बच्चों की जान बच गई। यह शख्स है रघुवीर सिंह भील। ब्लॉक मेडिकल ऑफिस में स्वास्थ्य सुपरवाइजर रघुवीर सिंह जाति से भील हैं।
जब वे स्वास्थ्य कार्यकर्ता बने थे तो नेसकला के साथ ऊँदरी का पुरा टोले में खसरा फैला था। वे बताते हैं कि लोगों ने बच्चों को नहलाना बंद कर दिया था। घरों के बाहर नीम के पत्ते टाँग दिए थे। अनपढ़ आदिवासी किसी भी तरह के इलाज से ना तो परिचित थे और ना इसके लिए तैयार थे। रघुवीर सिंह को जब पता चला कि टोले के अधिकांश बच्चे बीमार हैं तो वे सभी के घर गए और लोगों को समझाया कि वे बच्चों का इलाज करवाएँ नहीं तो उनकी जान चली जाएगी। उन्होंने भील समाज के अपने जाति बंधुओं को समझाया कि यह संक्रामक रोग है तो ऐसे उपाय करो जिससे बच्चों में संक्रमण न फैले। उन्हीं की पहल पर स्वास्थ्य विभाग की एक टीम ने आकर बच्चों का इलाज किया। बात जब टीका लगाने की आई तो ग्रामीण अड़ गए। उन्होंने इंजेक्शन लगवाने से इंकार कर दिया। फिर रघुवीर सिंह को आगे आना पड़ा। उन्होंने समझाया और गारंटी ली कि बच्चों को कुछ हुआ तो उनकी जिम्मेदारी। आखिरकार बच्चों को टीका लगा और आज बच्चे स्वस्थ्य हैं।
ऐसा ही एक बच्चा देशराज हमें मिला ऊँदरी का पुरा के स्कूल में। कक्षा तीसरी में पढ़ रहे देशराज को भी खसरा हुआ था। तब उसके पिता प्रीतम ने रघुवीर सिंह के कहने पर ही उसे खसरे का टीका लगाया गया था। प्रीतम कहते हैं कि तब हमें कुछ पता न था। हम तो मानते थे कि माता का प्रकोप है। रघुवीर सिंह ने जिम्मा लिया तो टीका लगवाया। इसके पहले भी उन्हीं के कहने पर बच्चों को टीका लगा था और वे ठीक हुए। आज प्रीतम खुद इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनके आसपास के टोलों के लोग बच्चों को टीका लगवाएँ।
गौरतलब है कि खसरा वायरस से होता है । इसके लक्षण हैं - बुखार, खॉंसी, नाक का चलना, आँखे लाल होना और सारे शरीर पर दाने (मैक्यूलोपैपूलर, इरिथ्रोमेटस) आना और बच्चों में घातक एनसिफेलोपैथी का होना। यह हवा के द्वारा फैलता है। इसका शुरूआती लक्षण 3-4 दिन तक तेज बुखार आना है। लाल दाने पहले सिर पर होते हैं। फिर सारे शरीर पर हो जाते हैं। इसमें खुजली भी होती है। सौ में से 30 ज्ञात मामलों में खसरा गंभीर हो जाता है। यह 9 माह से 10 साल तक की उम्र के बच्चों में तेजी से फैलता है। इसका कोई इलाज नहीं है। टीकाकरण ही इससे बचाव का एकमात्र तरीका है। खसरे की पहचान के बाद बच्चे को दो दिनों में विटामिन 'ए" की दो खुराक दी जाती है।
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