19 Apr 2012

सफल हुई समझाइश, गाँवों में लग रहे ज्यादा टीके

Story contributed by Mr.Pankaj Shukla, City Bureau Head, Navdunia, Bhopal, Madhya Pradesh

भोपाल। 'माता का प्रकोप है तो बच्चे को दस्त क्यों लगे?", 'माता निकलने के बाद बच्चा ज्यादा कमजोर क्यों हो गया?", 'क्यों माता निकलने पर कई बच्चों की एकसाथ मौत हो जाती है?" इन सवालों की गहराई समझाते हुए जब चिकित्सकों ने गाँव वालों को बताया कि माता की पूजा जरूर करो लेकिन माता निकली है तो बच्चेका इलाज करवाओ और सभी बच्चों को टीका लगवाओ। माता बच्चे को आशीर्वाद देती है उसे बीमार नहीं करती। बात ग्रामीणों की समझ में आई और उन्होंने खसरेका टीका लगवाना जरूरी समझा। यही कारण है कि ग्वालियर में विशेष खसरा टीकाकरण अभियान के पहले दिन शहर से ज्यादा गाँवों में टीके लगाए गए। 
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साल तक के बच्चों को अपनी चपेट में लेना वाला खसरे पर अब नकेल कसी जाएगी। इसके लिए यूनिसेफ के सहयोग से मप्र स्वास्थ्य विभागमहिला एवंबाल विकास विभाग और स्कूल शिक्षा विभाग ने मिल कर विशेष अभियान शुरू किया है। इस वर्ष यह अभियान ग्वालियर-चंबल संभाग के 7 जिलों सहित प्रदेश के14 जिलों में चलाया जाएगा। ग्वालियर के बरई विकासखण्ड के कुलेठडबरा के बिलउवाहस्तिनापुर विकासखण्ड के बड़ा गाँव जैसे गाँवों में लोगों को उन्हीं केअंदाज में समझाया गया कि खसरा माता का प्रकोप नहीं है। माता तो बच्चों का भला करती है। वह कुपित हो कर उनकी जान क्यों लेगीअगर यह माता का गुस्साहोता तो केवल एक बच्चे पर होता एक के बीमार होने पर आसपास के दूसरे बच्चे बीमार क्यों हो जाते हैंइन सवालों के साथ ग्रामीणों को समझाया गया कि माताकी पूजा करो लेकिन पहले बच्चे को टीका लगवाओ। खसरे के लक्षण दिखे तो इलाज करवाओ। 

क्या इस समझाइश का असर होता हैसवाल जितना महत्वपूर्ण था उतना ही दिलचस्प इसका जवाब भी। ग्वालियर के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉअनूपकम्ठान प्रसन्नाता से बताते हैं कि इसका असर हुआ। गाँवों में लोगों ने बच्चों को टीका लगवाना शुरू कर दिया है। यकीन  हो तो आँक ड़ों को देख लें। विशेषअभियान के पहले दिन ग्वालियर में कुल 20 हजार 185 बच्चों को खसरे के टीके लगाए गए। इनमें से शहरी क्षेत्र के बच्चे 6 हजार 326 थे। बाकि सभी 14 हजार सेज्यादा बच्चे ग्रामीण अंचल से थे। गौर करने वाली बात यह है कि ग्वालियर जिले में शहरी और ग्रामीण आबादी लगभग समान हैं। 
सभी जानते हैं कि खसरा एक ऐसा संक्रमण है जो माता-पिता की अज्ञानता के कारण और भयावह हो जाता है। खसरा श्वसन तंत्र का घातक और संक्रामक रोग है।खसरा होने पर बच्चे को 2-3 दिन बुखार आता है। खॉंसी हो जाती हैनाक बहने लगती है और आँखें लाल हो जाती है। पहले सिर पर फिर पूरे शरीर पर लाल दानेउभर आते हैं और इनमें खुजली भी होती है। आज भी शहरी क्या ग्रामीण समाज भी इसे 'छोटी मातामानता है और बच्चे का इलाज करवाने के बजाय झाड़फूँक,नीम के पानी से नहलाने सहित तमाम उपाय करता है। इतना ही नहीं बच्चे की स्थिति बिगड़ने पर इसे माता का प्रकोप माना जाता है। गाँवों में कई लोगमाता-पिता को यह कह कर डराते हैं कि इलाज करवाया तो माता नाराज हो गई। इस कारण कई ग्रामीण देखादेखी अपने बच्चों का  तो इलाज करवाते हैं और नाटीका लगवाते हैं। बच्चे की जान बचाने के लिए मन्न्त माँगी जाती है। कई जगह माथा टेका जाता है। इसी कारण रिवाज है कि जिस किसी बच्चे को माता निकलतीहै (खसरा होगा हैतो शादी के पहले उसकी ओर से माता पूजन किया जाता है। ग्वालियर में भी यह सोच गहरे से जमी हुई थी। पिछले कई बरसों से यहाँ केअस्पतालों में टीकाकरण का काम कर रहीं स्वास्थ्य कार्यकर्ता रजनी फर्डनीस बताती हैं कि बच्चा जब ज्यादा उल्टियाँ करने लगता था और सुस्त हो जाता तोमाता-पिता अस्पताल लाते। वह यही कहते कि माता का प्रकोप है। वह कुपित हो गई है। लेकिन अब उन्हें समझाया जा रहा है। उन्हें बताया जा रहा है कि बच्चे कोबुखार आना और दाने निकलना संक्रमण के कारण है। मुफ्त में टीका लगा कर उसकी जान बचाई जा सकती है। यूनिसेफ के हेल्थ स्पेशलिस्ट डॉ गगन गुप्ता कहते हैंकि अब जब ग्रामीणों में खसरा टीकाकरण के प्रति चेतना  रही हैं तो हमें उम्मीद है कि हम खसरे पर नियंत्रण कर पाएँगे। यूनिसेफ के संचार अधिकारी अनिलगुलाटी मानते हैं कि हमें ज्यादा से ज्यादा खसरे के बारे में बात करना चाहिए और लोगों बताना चाहिए कि अगर उन्होंने अपने बच्चों को खसरे का टीका नहींलगवाया जो बच्चों की जान खतरे में हैं।

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