Story contributed by Mr. Pankaj Shukla, City Bureau Head, Navdunia, Bhopal, Madhya Pradesh
कोल्ड चेन टूटने से टीके का असर खत्म होने का खतरा रहता है। इसलिए टीकाकरण टीम को एक दिन में एक जगह से दूसरी जगह भेजना मुमकिन नहीं होता है।अब किसी स्कूल में बच्चों की संख्या कम है तो दल को देर तक खाली बैठे रहना पड़ता है और दूसरी तरफ कई आंगनबाड़ी में दल न होने के कारण टीकाकरण नहींहो पाता। ऐसे में या तो टीकाकरण के दिन बढ़ाए जाएं या और कर्मचारियों की व्यवस्था हो।
इस परेशानी से निपटने के लिए टीकाकरण अधिकारियों ने अपनी रणनीति को नई दिशा दी है। गुना के जिला टीकाकरण अधिकारी विश्वजीत सिन्हा बताते हैं कि उनलोगों ने कम संख्या वाले स्कूलों और आंगनबाड़ियों के टीकाकरण का कार्यक्रम आसपास रख दिया। इसमें बच्चों को उस स्कूल में ले जाया गया, जहां टीकाकरणकिया जा रहा था। इस तरह बच्चों को टीके भी लग गए और दल को जगह भी नहीं बदलनी पड़ी।
बीनागंज में भी यही हुआ। दो लाख 45 हजार की आबादी वाले इस खण्ड में 306 गांव, 522 स्कूल और 356 आंगनबाड़ियां हैं। खण्ड में कुल 65 वैक्सीनेटर उपलब्धथे। 32 उपकेन्द्रों और चार फोकल पाइंट में बंटे इस खण्ड में कुछ स्कूल और आंगनबाड़ियों को जोड़ दिया गया। यह योजना काम कर गई।
इसी तरह अशोकनगर के शहरी क्षेत्र में स्थित 65 स्कूलों में टीकाकरण के लिए एएनएम, वैक्सीनेटर और 72 आंगनबाड़ियों की सहायिकाओं को लेकर आठ दलबनाए गए। इन दलों को छह दिन का ज्यादा काम दे कर टीकाकरण अभियान पूरा किया गया। जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. एसके सिंह बताते हैं कि इस योजनाका ही नतीजा है कि स्कूलों में टीकाकरण का लक्ष्य 79.26 प्रतिशत पूरा हुआ।
गौरतलब है कि मप्र में कुल 57.7 प्रतिशत बच्चों को ही खसरे का टीका लग पाता है। ‘डिस्ट्रीक लेवल हाऊसहोल्ड एंड फेसिलिटी सर्वे’ 2003 (डीएलएचएस-3) केअनुसार खसरा टीका लगाने की दर गांवों में और भी कम है। गांवों में केवल 53.6 प्रतिशत बच्चों को ही यह टीका लग पाया था जबकि शहरों में यह दर 73.3प्रतिशत थी। हालांकि 2002-04 में हुए डीएलएचएस-2 में यह दर काफी कम थी। तब गांवों के मात्र 41 फीसदी बच्चों को ही खसरा टीका लगा था।
खसरा एक जानलेवा संक्रमण है। यह हवा के द्वारा फैलता है। इसका शुरुआती लक्षण 3-4 दिन तक तेज बुखार आना है। लाल दाने पहले सिर पर होते हैं। फिर सारेशरीर पर हो जाते हैं। इसमें खुजली भी होती है। गांवों में एक बच्चे को होने पर यह तेजी से दूसरों में फैल जाता है। 9 माह से लेकर 10 साल की उम्र तक के बच्चेइसकी चपेट में आते हैं।
यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. गगन गुप्ता बताते हैं कि बुखार, खांसी, नाक का बहना, आंखें लाल होना और सारे शरीर पर दाने (मैक्यूलोपैपूलर, इरिथ्रोमेटस)आना और बच्चों में घातक एनसिफेलोपैथी का होना खसरे के लक्षण हैं।
खसरा बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है। इसलिए बच्चे खसरा होने के बाद जल्दी अन्य बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। यही कारण है किबच्चों की जान बचाने के लिए खसरे पर नियंत्रण जरूरी है। इस विशेष अभियान का असर यह हुआ कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को टीका लगाया गया ताकि वे इसजानलेवा बीमारी से बचाए जा सकें।
सरकारी विभागों के लक्ष्य तय तो हो जाते हैं लेकिन कर्मचारियों की कमी आदि की बात कहकर ये पूरे नहीं हो पाते। लेकिन मध्य प्रदेश में खसरा टीकाकरण केविशेष चक्र में थोड़ी सी समझदारी और समझदारी भरी योजना ने टीकाकरण कर्मचारियों की कमी के बावजूद अभियान पर असर नहीं पड़ने दिया।
गुना में कम संख्या वाली आंगनबाड़ियों और स्कूलों का टीकाकरण संयुक्त रूप से करके ज्यादा बच्चों को टीके लगाए गए। वहीं अशोकनगर में एएनएम औरआंगनबाड़ी सहायिकाओं को शामिल कर बने दल ने स्कूलों में अस्सी फीसदी बच्चों को टीके लगा दिए।
यूनीसेफ के सहयोग से मप्र स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और शिक्षा विभाग ने मिलकर टीकाकरण का यह विशेष अभियान शुरू किया है।तीन हफ्तों तक चलने वाले इस विशेष चक्र में अशोकनगर-गुना सहित प्रदेश के चुनिंदा 14 जिलों के स्कूलों और आंगनबाड़ियों में बच्चों को खसरे के टीके लगाएजा रहे हैं। अभियान को सफल बनाने के लिए प्रचार-प्रसार के जरिए ज्यादा से ज्यादा माता-पिता को टीकाकरण के लिए प्रेरित गया। लेकिन कई जगह कर्मचारियोंकी कमी समस्या बन गई।
‘जहां चाह वहां राह’ की तर्ज पर इस समस्या का ऐसा निराकरण किया गया कि न तो कर्मचारियों की कमी का अहसास हुआ और न ही टीकाकरण का लक्ष्य ही पीछेछूटा। गौरतलब है कि खसरे के टीकाकरण में बच्चों को इंजेक्शन लगाए जाते हैं। टीका प्रभावकारी रहे इसके लिए जरूरी है कि उसका आदर्श तापमान बना रहे।
गुना में कम संख्या वाली आंगनबाड़ियों और स्कूलों का टीकाकरण संयुक्त रूप से करके ज्यादा बच्चों को टीके लगाए गए। वहीं अशोकनगर में एएनएम औरआंगनबाड़ी सहायिकाओं को शामिल कर बने दल ने स्कूलों में अस्सी फीसदी बच्चों को टीके लगा दिए।
यूनीसेफ के सहयोग से मप्र स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और शिक्षा विभाग ने मिलकर टीकाकरण का यह विशेष अभियान शुरू किया है।तीन हफ्तों तक चलने वाले इस विशेष चक्र में अशोकनगर-गुना सहित प्रदेश के चुनिंदा 14 जिलों के स्कूलों और आंगनबाड़ियों में बच्चों को खसरे के टीके लगाएजा रहे हैं। अभियान को सफल बनाने के लिए प्रचार-प्रसार के जरिए ज्यादा से ज्यादा माता-पिता को टीकाकरण के लिए प्रेरित गया। लेकिन कई जगह कर्मचारियोंकी कमी समस्या बन गई।
‘जहां चाह वहां राह’ की तर्ज पर इस समस्या का ऐसा निराकरण किया गया कि न तो कर्मचारियों की कमी का अहसास हुआ और न ही टीकाकरण का लक्ष्य ही पीछेछूटा। गौरतलब है कि खसरे के टीकाकरण में बच्चों को इंजेक्शन लगाए जाते हैं। टीका प्रभावकारी रहे इसके लिए जरूरी है कि उसका आदर्श तापमान बना रहे।
कोल्ड चेन टूटने से टीके का असर खत्म होने का खतरा रहता है। इसलिए टीकाकरण टीम को एक दिन में एक जगह से दूसरी जगह भेजना मुमकिन नहीं होता है।अब किसी स्कूल में बच्चों की संख्या कम है तो दल को देर तक खाली बैठे रहना पड़ता है और दूसरी तरफ कई आंगनबाड़ी में दल न होने के कारण टीकाकरण नहींहो पाता। ऐसे में या तो टीकाकरण के दिन बढ़ाए जाएं या और कर्मचारियों की व्यवस्था हो।
इस परेशानी से निपटने के लिए टीकाकरण अधिकारियों ने अपनी रणनीति को नई दिशा दी है। गुना के जिला टीकाकरण अधिकारी विश्वजीत सिन्हा बताते हैं कि उनलोगों ने कम संख्या वाले स्कूलों और आंगनबाड़ियों के टीकाकरण का कार्यक्रम आसपास रख दिया। इसमें बच्चों को उस स्कूल में ले जाया गया, जहां टीकाकरणकिया जा रहा था। इस तरह बच्चों को टीके भी लग गए और दल को जगह भी नहीं बदलनी पड़ी।
बीनागंज में भी यही हुआ। दो लाख 45 हजार की आबादी वाले इस खण्ड में 306 गांव, 522 स्कूल और 356 आंगनबाड़ियां हैं। खण्ड में कुल 65 वैक्सीनेटर उपलब्धथे। 32 उपकेन्द्रों और चार फोकल पाइंट में बंटे इस खण्ड में कुछ स्कूल और आंगनबाड़ियों को जोड़ दिया गया। यह योजना काम कर गई।
इसी तरह अशोकनगर के शहरी क्षेत्र में स्थित 65 स्कूलों में टीकाकरण के लिए एएनएम, वैक्सीनेटर और 72 आंगनबाड़ियों की सहायिकाओं को लेकर आठ दलबनाए गए। इन दलों को छह दिन का ज्यादा काम दे कर टीकाकरण अभियान पूरा किया गया। जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. एसके सिंह बताते हैं कि इस योजनाका ही नतीजा है कि स्कूलों में टीकाकरण का लक्ष्य 79.26 प्रतिशत पूरा हुआ।
गौरतलब है कि मप्र में कुल 57.7 प्रतिशत बच्चों को ही खसरे का टीका लग पाता है। ‘डिस्ट्रीक लेवल हाऊसहोल्ड एंड फेसिलिटी सर्वे’ 2003 (डीएलएचएस-3) केअनुसार खसरा टीका लगाने की दर गांवों में और भी कम है। गांवों में केवल 53.6 प्रतिशत बच्चों को ही यह टीका लग पाया था जबकि शहरों में यह दर 73.3प्रतिशत थी। हालांकि 2002-04 में हुए डीएलएचएस-2 में यह दर काफी कम थी। तब गांवों के मात्र 41 फीसदी बच्चों को ही खसरा टीका लगा था।
खसरा एक जानलेवा संक्रमण है। यह हवा के द्वारा फैलता है। इसका शुरुआती लक्षण 3-4 दिन तक तेज बुखार आना है। लाल दाने पहले सिर पर होते हैं। फिर सारेशरीर पर हो जाते हैं। इसमें खुजली भी होती है। गांवों में एक बच्चे को होने पर यह तेजी से दूसरों में फैल जाता है। 9 माह से लेकर 10 साल की उम्र तक के बच्चेइसकी चपेट में आते हैं।
यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. गगन गुप्ता बताते हैं कि बुखार, खांसी, नाक का बहना, आंखें लाल होना और सारे शरीर पर दाने (मैक्यूलोपैपूलर, इरिथ्रोमेटस)आना और बच्चों में घातक एनसिफेलोपैथी का होना खसरे के लक्षण हैं।
खसरा बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है। इसलिए बच्चे खसरा होने के बाद जल्दी अन्य बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। यही कारण है किबच्चों की जान बचाने के लिए खसरे पर नियंत्रण जरूरी है। इस विशेष अभियान का असर यह हुआ कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को टीका लगाया गया ताकि वे इसजानलेवा बीमारी से बचाए जा सकें।
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